आधुनिक षिक्षा में बनाम योगविद्या की उपयोगिता
Abstract
आधुनिक समाज में शिक्षा प्रणाली की अपनी विशिष्ट भूमिका है। परन्तु यह केवल जीवन की आर्थिक निर्भरता प्रदान करने में सक्षम नहीं हो पा रही है। सामाजिक समृद्धि एवं प्रतिष्ठा की बात इसमें समाहित तो है परन्तु प्रतिष्ठा एवं समृद्धि का किस प्रकार किया जाए उसकी सूक्ष्मदृष्टि प्राय लुप्त है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जीवन को समग्र रुप से विकसित करने की विधा विद्यमान नही है। एक अध्यापक का वास्तविक दायित्व एवं जिम्मेदारी इतनी है कि वह कितने छात्रों के प्रति सजक एवं सतर्क है। इसलिए आज की शिक्षा एकांगी हो गई है। इसका कारण है शिक्षा का व्यवसायीकरण। योगविद्या जीवन के सर्वागीण विकास की व्याख्या करती है। वह विकास की तकनीकी बनाती है। इससे पता चलता है कि जीवन को कैसे जीया जाए। बाहरी दूनिया में आत्मनिर्भरता की कला शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। परन्तु अपने आन्तरिक जगत में व्यवहार पक्ष की महत्ता है तो स्वंय के अन्दर सही सोच, पवित्र भाव एवं उत्कृष्ट चिन्तन की आवश्यकता सर्वोपरि है। दोनों का मिला जुला स्वरुप योगविद्या के द्वारा प्राप्त होता हैं। योगविद्या दोनों को एक साथ विकसित करती हैं। आज की शिक्षा में इन मूलभूत बातों का कोई महत्व नजर नही आता है। प्राचीनकाल में शिक्षा व विद्या ज्ञान दान की पुण्य परम्परा थी। ऋषि मुनियों और आचार्यों ने जो अपने जीवन में अनेक गूढ तत्वों का ज्ञान प्राप्त किया करते थे और अनेक समस्यों की समझ भी रखते थे। वे केवल निस्वार्थ भाव से ज्ञान की गुरु शिष्य परम्परा हमारी वैदिक शिक्षा पद्धति की देन हैं। जिसके मूल में योगविद्या का आधार रहा हैं।