पातंजल योगसूत्र में दुःख का स्वरूप एवं निरोध

  • अरविंद कुमार यादव
  • डॉ० शाम गणपत तिखे

Abstract

भारतीय दार्शनिकों, आत्मज्ञानियों एवं विचारकों का खोज का केंद्रिय विषय दुःख रहा है। आधुनिक युग में भी जितने तरह के शोध कार्य चल रहे हैं सबका उद्येश्य है कि संसार से दुःख को कम किया जाय। मनुष्य का जीवन को आसान बनाया जाय। पातंजल योग सूत्र, योग का एक उत्तम ग्रंथ है जिसका मुख्य विषय है; हेय, हेयहेतु, हान और हानोपाय अर्थात दुःख, दुःख का कारण, दुःख निरोध और दुःख निरोध का मार्ग। महर्षि पातंजलि ने विवेकवान व्यक्ति के लिए यह संसार को दुःखमय बताया है। चार प्रकार के दुःख से सभी प्रभावित होते हैं- परिणाम दुःख, ताप दुःख, संस्कार दुःख एवं गुणवृतिविरोध दुःख। दुःख का कारन है द्रष्टा और दृष्य का संयोग, विवेकज्ञान के द्वारा इस दुःख का निरोध संभव है। अष्टांग योग-यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि के अभ्यास से विवेकज्ञान की प्राप्ति होती है जिससे प्रकृति और पुरूष के बीच के भेद का बोध होता है एवं दुःख का कारण समाप्त हो जाता ूहै। आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है एक अविचल आनंद की अवस्था प्राप्त होता है जिसे कैवल्य, मोक्ष या मुक्ति की अवस्था कहते हैं।

Published
2021-07-16