मानवाधिकार का वर्तमान परिदृश्य में प्रांसगिकता

  • भरतवैष्णव
  • डाॅ. अनूपप्रधान

Abstract

मानव सृष्टि की सर्वश्रेष्ट कृति समझा जाताहै।उसके समुचित उत्थान और विकास हेतु आवश्यक है कि उसे जन्मोपरान्त ही कुछ मूलभूत अधिकारस्वतः प्राप्त हो जाएँ और यह समाज तथा सरकार का पुनीतकत्र्तव्य और दूसरे शब्दा ेंमें उत्तरदायित्वभी होना चाहिए कि वह प्रत्येक व्यक्ति को समाज मे ंसम्मान और सुरक्षा, जीवन व्यतीत करने के लिए सभी साधन और अवसर उपलब्ध कराए।इसी परिप्रेक्ष्य में अन्तर्राष्ट्ररश् स्तर पर संयुक्तराष्ट्र संघ द्वारा बिनादेश, धर्म, लिंग और जाति के भेदभाव के सम्पूर्णविश्व के प्रत्येक मानव के लिय ेमूलभूत अधिकार दिलाने के लिए ‘मानवाधिकार घोषणा’ एक महत्वपूर्ण प्रयास कियागया।संयुक्तराष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसम्बर, 1948 को जारी ‘मानवाधिकार घोषणा’ में प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 अधिकार प्रदान करने की घोषणा की गई।हमारे देश में भी इसी आधार पर सरकार द्वारा विभिन्न प्रयत्न किए गए।वास्तव मे ंमानव होने के गनाते हम सभी को भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामान्य नागरिक सुविधाओं एवं सुरक्षायुक्त जीवन जीेने का हक है।हमारा यह हक हमें सदैव मिलता रहे और इस हक को कोई न छीन सकें, इसका उत्तरदायित्व सरकार है।सरकार ने इस उत्तरदायित्व का भलीभाँति निर्वहनकरने हेतु अक्टुबर, 1993 में देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया।विभिन्न राज्यों में भी राज्य मानवाधिकार आयोगों का गठनकर, इस व्यवस्था को अधिक प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया जा रहा है।मानवाधिकार आयोग का मुख्य उद्देश्य देश के सभी नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने सम्बन्धी व्यवस्था की निगरानी करना तथा मानवाधिकार उल्लंघनकरनेवालोंको समुचित दण्ड दिलाकर भविष्य में इस प्रकार के कुकृत्यों की पुनरपवृत्ति रोकना है।

Published
2020-11-25