योगिक साहित्य में संस्कृत की भूमिका रू एक विश्लेषण
Abstract
प्राचीन साहित्य का अवलोकन करने पर सामान्यतरू ज्ञात होता है कि प्राचीन ग्रंथों का आधार पूर्णतरू संस्कृत थी । आधुनिक युग में भी प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन संस्कृत में ही किया जाता है । संस्कृत भाषा पूर्णतरू वैज्ञानिक व आध्यात्मिक है । संस्कृत भाषा के उच्चारण से जो स्पंदन उत्पन्न होते हैं वे संपूर्ण शरीर में होने वाली संवेदनाओं की अनुभूति में सहायक होते हैं । विद्वानो के अनुसार तालु भाग को ष्शिवष् और जिव्हा को ष्शक्तिष् कहा गया है जब संस्कृत मंत्रो के उच्चारण से तालु अर्थात् शिव और जिव्हा अर्थात् शक्ति का मिलान होता है तो मंत्रो का सकारात्मक प्रभाव व्यक्ति के शारीरिकए मानसिकए सामाजिक और आध्यात्मिक स्तर पर पडता है । सामान्य रूप से देखा भी गया है कि जितने भी वैदिक ग्रंथ हैं उन सभी की मूल भाषा संस्कृत ही रही है । संस्कृत को अत्यंत प्राचीन एवं दैवीय भाषा भी कहा जाता है । योगिक साहित्य में भी जितना प्राचीन साहित्य है वह संपूर्ण मूलता संस्कृत में ही प्राप्त होता है । योगिक ग्रंथों के अंतर्गत मुख्य रूप से देखा जाए तो वेद पुराण उपनिषद योग दर्शन स्मृतियां हठयोग ग्रंथ आदि भी मूलता संस्कृत में ही प्राप्त होते हैं इनकी रचना प्राचीन समय में संस्कृत भाषा में की गई थी। वर्तमान में संस्कृत साहित्य ही ज्ञान का आधार बना हुआ है संस्कृत भाषा भारतीय साहित्य की सबसे पुरातन एवं सर्व प्रमाणित भाषा मानी जाती है संस्कृत भाषा के उच्चारण से जो स्पंदन व संवेदना उत्पन्न होती हैं उनका न केवल शरीर पर प्रभाव पड़ता हैए बल्कि मानव मस्तिष्क पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है । अतः कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा के उच्चारण से शारीरिक मानसिक व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।