वैदिक वांग्मय में योग की पावन पुण्य परम्परा

  • डॉ. अरुण कुमार साव
  • डॉ. सीमा चौहान
  • प्रज्ञा साव

Abstract

वैदिक जीवन परम्परा में योग भारत वर्ष की सबसे प्राचीन एवं अमूल्य धरोहर है। आदि से आधुनिक के इस वैज्ञानिक युग तक योग मानवीय जीवन का अविछिन्न अंग रहा है। जिसकी छवि वैदिक वांग्मयों ;ऋग्वेद ग्ग्ण्114ण्14ए प्ण्50ण्10ए प्प्प्ण्52ण्10ए यजुर्वेद ग्प्ण्1ए ग्प्प्ण्67ए अथर्ववेद प्टण्14ण्4ए ग्प्ग्ण्71ण्1ए सामवेद प्ण्5ण्18ण्8 आदि द्ध में स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है। प्राचीन काल के ऋषि.मनीषियों द्वारा जो धर्म मानव जाति के उद्धार के लिए निश्चित हुआ वह योग ही हैए साथ ही योग धर्म.अर्थ.काम.मोक्ष की प्राप्ति का प्रमुख साधन रहा है। समस्त ज्ञान.विज्ञानए योग की धुरि में ही समाहित है। व्यक्तित्व का सर्वांगिण विकास एवं शारीरिकए मानसिकए बौद्धिक तथा आध्यात्मिक सभी प्रकार के शक्तियों का विकास योग द्वारा ही सम्भव है।

Published
2020-09-08