चित्रलेखा उपन्यास में पाप और पुण्य के संदर्भ में मानवीय अनुभवों से प्रेरित मनोवैज्ञानिक चिंतन की गहनता
Abstract
भगवतीचरण वर्मा हिन्दी साहित्यकारों में अग्रणी माने जाते है द्य भगवतीचरण वर्मा का साहित्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य ऐसी धरोहर है द्य उनका श्चित्रलेखाश् यह उपन्यास जितना कल प्रासंगिक थाए उतना ही आज है और उतना ही आने वाले समय में होगाए इसे हम कालजयी उपन्यास मान सकते है द्य प्रस्तुत उपन्यास में उपन्यासकार ने श्वेतांक और विशालदेव इन दो शिष्यों के माध्यम से रत्नाम्बर का पाप और पुण्य की खोज करना बडा ही रोचक है द्य एक ही गुरू के दो शिष्य होकर भी वह अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर पाप और पुण्य की परिभाषा अलग.अलग देते है द्य जिसपर रत्नाम्बर उन्हें कहते हैए पाप और पुण्य और कुछ नहीं होता हैए व्यक्ति के जीवन में जिस प्रकार के अनुभव आते हैए उसको जिस तरह जीवन जीना पडता है उसी के आधार पर वह पाप और पुण्य की परिभाषाएँ करता है द्य इसीलिए श्वेतांक जीवन के अनुभवों को जीने वालेए वासना और मदिरा में तृप्त रहने वाले बीजगुप्त को देवता मानता है तो वही संसार की मोहमाया का त्याग करने वाले कुमारगिरी को पापी कहता है द्य विशालदेव बीजगुप्त को पापी और कुमारगिरी को देवता मानता है द्य प्रस्तुत उपन्यास मानव को जीवन जीने की प्रेरणा देता है तथा मार्गदर्शन करता है द्य मानव पाप और पुण्य के भेद में न पडकर सिर्फ अपना जीवन अच्छे से व्यतित करे और अपने जीवन से दूसरों के जीवन में खुशी लाये यही जीवन की सार्थकता है