श्सामान्य एवं अनुसूचित वर्ग के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर उनके सामाजिक समायोजन के प्रभाव का अध्ययन

  • विनोद कुमार भार्गव

Abstract

हम जानते हैं कि किसी भी राष्ट्र का विकास शिक्षा के बिना संभव नहीं है। हमारे लोकनायकों ने शिक्षा की महत्ता को जाना तथा देश मैं विभिन्न प्रकार की शिक्षा के लिएए अनेक तरह के शिक्षण संस्थानए विश्वविद्यालय तथा शोध केन्द्रों को स्थापित किया। हमारे राष्ट्र नायकों ने अपनी दूर दृष्टि से यह भी देखा कि शिक्षा केवल सीमित तबके तक सीमित न होवे बल्कि वह सभी वर्गों के लिए होयनिष्पक्ष होय भेद भाव रहित होय सभी वर्गो के लिए 6 से 14 वर्ष तक समानय निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा होए इसे कानूनी रूप से भी अनिवार्य किया गयायवहीं भारतीय शिक्षा व्यवस्था में संवैधानिक रूप से यह व्यवस्था भी बनाई गई कि वह वर्ग जिसे निम्न वर्ग अथवा अनुसूचित वर्ग कहा जाता हैएवह भी उच्च वर्गध्सामान्य वर्ग के बराबरी पर खड़ा हो सकेए उसके लिए अनुसूचित वर्गों को शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण की व्यवस्था संवैधानिक रूप से प्रदान की गई एशिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु इन 74 वर्षों में विभिन्न शिक्षा आयोग आए जिन्होंने अपने अमूल्य सुझाव शिक्षा में सुधार हेतु दिएए भारत सरकार ने उन पर अमल भी कियाए किंतु इतने वर्षों के बाद भीए आए दिन समाचारों पत्रों व टीण्व्हीण् चैनल्स को शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए देखा गया हैए जो कि किसी भी राष्ट्र की तरक्की के लिए उचित नहीं हैए क्योंकि राष्ट्र का भविष्य उस देश के बच्चे हैंए बच्चों से ही राष्ट्र का भविष्य हैए अतः शिक्षा से बच्चों का और बच्चों से राष्ट्र का भविष्य तय होता हैए अतः बच्चों मेंय राष्ट्र के भविष्य को ध्यान में रख कर अनुसूचित वर्ग व सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि पर सामाजिक समायोजन के प्रभाव का अध्ययन करना आज की आवश्यकता है।

Published
2020-09-09