योग एवं बौद्ध साहित्य में हस्त मुद्राओं का महत्व रू एक समीक्षा
Abstract
बौद्ध काल से ही गौतम बुद्ध की प्रतिमाओं में मुद्राओं का स्पष्ट प्रतीकात्मक चित्रण वर्णित मिलता है। बुद्ध धर्म के अनुयायी बौद्ध ध्यान या अनुष्ठान के दौरान बौद्ध साहित्य के माध्यम से विशेष विचारों की अनुभूति करने के लिए भगवान बुद्ध की मुर्तियों के लिए प्रतीकात्मक संकेत के रूप में दिखाते हैं। भारतीय साहित्य में अनेकों प्रसिद्ध महात्माओं की मूर्तियाँ मुद्राओं के स्वरूप में देवत्व का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करती दिखायी हैं। जिनका मूल उद्देश्य धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार हस्त मुद्राआें के अर्न्तगत धर्मचक्र मुद्रा, ध्यान मुद्रा, भूमिस्पर्श मुद्रा, वरद मुद्रा, करण मुद्रा, वज्र मुद्रा, वितर्क मुद्रा, अभय मुद्रा, उत्तरबोधी मुद्रा और अंजलि मुद्रा आदि का प्रतिमाओं और चित्र कला के माध्यम से प्रस्तुति का उल्लेख वर्णित मिलता है। योग मुद्राओं का अभ्यास आन्तरिक अनुभूतियों के लिए किया जाता है, इनके अभ्यास से प्रत्याहार की अवस्था प्राप्त हो जाती है। हठयौगिक मुद्राओं के अभ्यास से साधक शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक उपलब्धियों को प्राप्त कर लेता है। विभिन्न यौगिक ग्रन्थों में भी हस्त मुद्राओं जैसे ज्ञान मुद्रा, चिन् मुद्रा, अंजली मुद्रा, प्राण मुद्रा, हृदय मुद्रा, अपान मुद्रा और समान मुद्रा आदि का उल्लेख देखने को मिलता है।