हिंदी के महाकवि जयशंकर प्रसाद और मलयालम के महाकवि कुमारनाशान के काव्य में आत्माभिव्यक्ति की प्रवृत्ति . एक तुलनात्मक अध्ययन

  • डॉ. जॉर्ज जोसफ

Abstract

आत्माभिव्यक्ति स्वच्छन्दतावाद की बुनियादी चेतना है द्य यहाँ कवि अपनी भावना ए दृष्टि और अभिरुचि को अधिक महत्व देकर अपनी अनुभूति को अत्यंत उदात्त बनाकर उसको सार्वजनीन रूप देता है द्य स्वच्छन्दतावाद की आत्माभिव्यक्ति में अनुभूति के महत्व के बारे में आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने कहा है . ष् प्राचीन ग्रीक समीक्षक प्रकृति की अनुकृति को कला की सज्ञा देते थे द्य लेकिन स्वच्छन्दवादी अनुभूति की अभिव्यक्ति को कला मानते हैं द्य मन की प्रक्रिया ही कला में चित्रित घटना को आकार देती है और मानसिक क्रिया ही रूपों की सृष्टि करती है द्य इस प्रकार स्वच्छन्दतावाद का सारा क्षेत्र मनोमय हो गया द्यष् जयशंकर प्रसाद और कुमारनाशान ने अपनी वैयक्तिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करने में जो प्रयास किया वह उनके पूर्व कवियों में नहीं मिलता क्योंकि मध्ययुगीन और रीतिकाल के कवि भी सामाजिक मर्यादाओं से बंधित थे द्य इसलिए वे अपने काव्यों में अपने प्रणय संबंधों की चर्चा नहीं कर पाते थे

Published
2020-06-16