कृतिदेव यहां गायत्री द्वारा कुण्डलिनी जागरण

  • चंचल सूर्यवंशी

Abstract

शरीर में अनेक असाधारण और साधारण अंग है, असाधारण अंग जिन्हें मर्म स्थान कहते हैं। उन्हें केवल इसलिए मर्म स्थान नहीं कहे जाते कि वे बहुत सुकोमल एवं उपयोगी होते हैं, बल्कि इसलिए भी कहे जाते हैं कि उनके भीतर गुप्त अध्यात्मिक शक्तियों के महत्वपूर्ण केंद्र उपस्थित होते है। इन केंद्रों के अंदर बीज सुरक्षित रखे जाते हैं, जिनका उत्कर्ष, जागरण हो जाए तो मनुष्य कुछ भी कर सकता है या कुछ भी बन सकता है। उसमें अध्यात्मिक शक्तियों के स्रोत उमड़ सकते हैं और उस भार के फलस्वरूप एक ऐसी अलौकिक शक्तियों का भंडार बन सकता है, जो साधारण लोगों के लिए अलौकिक आश्चर्य से कम प्रतीत नहीं होती। ऐसे मर्म स्थलों में रीड या मेरुदंड का प्रमुख स्थान है। यह शरीर की आधारशिला है, यहां मेरुदंड 33 अस्थि खंडों से मिलकर बना है। इस प्रत्येक खंड में तत्वदर्शियों को ऐसी विशेष शक्तियां परिलक्षित होती है, जिनका संबंध देवी शक्तियों से है। देवताओं में जिन शक्तियों का केंद्र होता है, वे शक्तियां भिन्न-भिन्न रूप में मेरुदंड के इन अस्थि खंडों में पाई जाती है, इसलिए यहां निष्कर्ष निकलता है कि मेरुदंड 33 देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है। 8 वसु, 12 आदित्य, 11 रुद्र, इंद्र और प्रजापति इन 33 की शक्तियां उसमें बीज रुप में उपस्थित होती है। इस मेरुदंड में शरीर विज्ञान के अनुसार नाड़िया है और वह विविध कार्यों में नियोजित रहती है।

Published
2020-09-25