‘‘सत्य और अहिंसा की अवधारणा’’ में ‘‘गाँधी जी का वैचारिक अवदान’’
Abstract
वाणी सत्य से ही प्रतिष्ठित होती है यह सब सत्य में प्रतिष्ठित है। इसलिए विद्वान सत्य को ही सबसे ऊँचा बताते हैं। सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं और झूठ से बढ़कर कोई पाप नहीं। वस्तुतः सत्य ही धर्म का मूल है।