गुप्तकाल में भू.राजस्व
Abstract
प्राचीन भारत में भू.राजस्व ही राज्य के लिए धन संग्रह का स्थायी स्त्रोत था। गुप्त काल मे बड़े पैमाने पर ब्राह्मण आदि दानभोगियों को भूमि एवं ग्राम दान से भू.राजस्व की प्रथा को स्थायित्व प्राप्त हुई। इसी काल में राजस्व के इन सिद्धांत को सामंती स्वरूप प्रदान किया गया। इस प्रक्रिया से भारतीय राजस्व व्यवस्था में परत.दर.परत कर वसूली की घृणित प्रणाली का प्रारंभ हुआ।