छायावाद और राष्ट्रीय चेतना

  • डॉ0 पूजा झा

Abstract

छायावाद आधुनिक हिन्दी साहित्येतिहास का स्वर्णयुग है। प्राचीन एवं मध्यकालीन कवियों में जिस तरह सूर, कबीर, तुलसी, जायसी ने काव्य के भाव-पक्ष और कला-पक्ष के सारे प्रतिमान तोड़कर कीर्तिमान कायम किया, उसी तरह प्रथम विश्वयुद्ध से द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच जयषंकर प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी ने संपर्ण आधुनिक हिन्दी काव्येतिहास में प्रतिष्ठा और लोकप्रियता के उच्चतर मानदंडों को स्थापित किया। वस्तुतः छायावादी कविता दो विश्वयुद्धों के बीच की कविता है। छायावादी काल(1918 0-1936 0) में भारतीय जनमानस पर देश को स्वतंत्र कराने की चेतना पूर्णतः छाई हुई थी। इस समय तिलक का उद्योषक ’‘स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, और सुभाष की हुंकार ‘‘तुम मुझे खूद दो’’ मैं तुम्हें आजदी दूँगा’’ ने जनता को आजादी की लड़ाई के लिए उन्मुख कर दिया था। एक और तो गाँधी जी असहयोग सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलनों से भारतीय जनता को उद्वेलित कर रहे थे तो दूसरी और क्रांतिकारियों के बलिदानों ने सोई हुई जनता को जमा दिया था।

Published
2020-06-16