उतार चढाव

  • मुकेश नेगी

Abstract

रिमझिम बारिश के अफ़साने
जिन्दगी के उतार चढ़ाव में
भिगापन छोड़ जाते हैं

कलियां खिलने  लगती हैं
मन मदहोशी का रंग रंग
देती है

कई बार पगडंडियों से गुजरते हुए
बच्चपन की यादें ताजा होती है

जिन्दगी धीरे से गुजर बसर जाये
आस पगडंडियों मे टीकी रहती है

दिन चाहे जितनी भी मदहोश हो
रात जिन्दगी का सफर मोड़ ले जाती है

पहाड़ पगडंडियो के निकट प्रतीत होते हैं
इनमे गुजरते हुए जिन्दगी के लम्हे बीतते हैं।

Published
2016-03-16