तआरुफ़ अपना बकलम ख़ुद : न्यूयॉर्क
Abstract
"कहाँ से लाएगा कासिद बयाँ मेरा ज़ुबाँ मेरी?मज़ा था तब जो सुनते मेरे मुँह से दास्ताँ मेरी!"
अदबी महफ़िलों में अज़ीम शायर इस किस्म के हर्फ़िया ऐलान भी करते हैं और खुद-बयानी में कसर नफ़सी भी दिखाते हैं। अपना नाम भी लेंगे तो किसी शहर से जोड़ कर गोया कि बज़ाते खुद उनकी कोई पहचान ही नहीं। फ़िराक गोरखपुरी, मजाज़ लखनवी, जोश मलीहाबादी, हफ़ीज़ जालंधरी, मजरूह सुलतानपुरी, हसरत जयपुरी, शकील बदायुनी, साहिर लुधियानवी!