सागरी झीलों का शहर त्रिवेन्द्रम
Abstract
पसीना और चिपचिपाहट, चार दिनों से लगातार चलती यात्रा से चकराता दिमाग, थकावट से मुँदी आँखें अ़चानक एक ठंडा सा झोंका, मन कुछ संभला नन्हीं सी फिज़ा तन मन को छूती निकल गई प़्रदीप ने कंधे झकझोरते हुए कहा, "उठो! देखो न, फिर कहोगी कि दिखाया भी नहीं!" आँखें अपने आप खुल गईं, आँखों के फोकस में था नन्हीं नन्हीं लौले लिए सपाट फैला पानी, किनारों से पानी की ओर झुकते नारियल दरख्त, बाँस की चप्पू के सहारे तिरतीं नन्हीं-नन्हीं डोंगियाँ"कौन सी नदी है?" मैंने आँखें झपझपाते हुए कहा।