मौसम मेरे शहर के

  • ग़ज़ाल ज़ैग़म

Abstract

तुमने कभी इलाहाबाद की गर्मियाँ नहीं झेलीं...शुक्र है - पर हाँ, तुमने दोपहर के सन्नाटे को इलाहाबाद की सड़कों पर बजते भी नहीं सुना! ए. जी. ऑफिस के आसपास नीम व पीपल के घने पेड़ों तले ठहरी दफ़्तरी भीड़ को भी नहीं देखा। प्रयाग संगीत समिति के लॉन की ख़ामोशी को नहीं सुना। शाम को वहाँ से उठती मौसिक़ी की वह लहर भी नहीं सुनी जो लहू में राग बागेश्वरी बन कर उतर जाती है। यूनिवर्सिटी रोड की दुकानों में गर्मी की छुट्टी में बचे हुए विद्यार्थी किताबें पलटते हैं। आई. ए. एस. का इम्तिहान सिर पर खड़ा है। अमरनाथ झा हॉस्टल के लड़के हॉकी खेल रहे हैं। चारों ओर गुलमोहर ने आग सी लगा दी है। सर्किट हाउस के अमलतास जर्द फूलों के घुँघरुओं से सज गये हैं। अशोक के हरे भरे पेड़ बीच बीच में खड़े हैं अटल।

Published
2018-07-19